Friday, 15 April 2016

mulk

दुबई बहुत खूबसूरत है ,पर हर खूबसूरत अहसास आपको सुकून दे ये जरुरी नहीं , मेरे साथ यही हुआ ,
यहाँ मुल्क बहुत मशहूर शब्द है आधे से ज्यादा लोग इस शब्द के इर्द गर्द घूमते हैं ,तेरा क्या मुल्क है,तेरे मुल्क में क्या होता है ,मुल्क कब जायेगा,मुल्क मैं कौन कौन है,मुल्क मैं सब ठीक तो है ,आज की तश्वीर यही है की मैं समय काट रहा हूँ अपनों से मिलने क लिए उन्हें देखने के लिए,बस कब यांत्रिक चिड़िया मुझे ले के उड़े और मैं भी ख़ुशी के आसमान में उड़ चलू ,खूब उडू ..खूब खूब ,इतना की ख़ुशी मैं रो पडू। 

कारें  तो बहुत है चमक भी बहुत है पर सुकून नहीं है।


 ये तस्वीर ालफहीदी मेट्रो स्टेशन पर ली थी, add  का स्टाइल   70 -80  के ज़माने का  है ,हंसी आरही थी की दुबई की हाईटेक लाइफ में 70 का add ,,,लेकिन ऐड का मकसद बिलकुल जायज है ,इतने खूबसूरत शहर में भी टेंशन रहती है की बाम काम आजाएगा ,कैसा आराम पता नहीं पर कुछ दर्द की दवा बाम या कोई टेबलेट नहीं सिर्फ मुल्क  ही है। मुल्क के लोग, सड़के,पानी  , हवा,दूध,मेहँदी,रोटी,आंशू ,हँसी ,गलियाँ बहुत  आराम देती हैं किसी बाम की जरुरत नहीं। भारत माता की जय। 

2 comments:

  1. शैलेश जी, आपने अपने दिल की बात कही है। व्यथा जायज़ है । मनुष्य का मन चंचल है , उसे सुकून मिल भी नहीं सकता। मनुष्य के पास दो चीजे है "दिल और दिमाग" . ये दोनों साथ ही रहते है परन्तु साथ काम नहीं करते। क्योंकि ये दोनों हमेशा आपसी प्रतिस्पर्धा के साथ शरीर को यह एहसास दिलाते रहती है कि मेरे बिना तुम्हारा कोई वजूद नहीं है। जब दोनों में प्रतिस्पर्धा की लड़ाई ज्यादा बढ़ जाए तो साथ बैठ कर शांत मन से विचार करना चाहिए। क्योंकि दोनों में से एक के भी बिना मनुष्य का शरीर अपना वजूद खो देती है।

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  2. Sahi kah Rahe hain bhaiya Thanku so much

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